सुबह के ९ बजे थे, मैं नाश्ता बनाने में व्यस्त थी,पर आज मन कही और था ,किसी और की यादो में खोया हुआ,किसी और के इंतजार में मग्न ,अंतर्मन में बैठी सुरली गायिका मधुर मधुर स्वर में गुनगुना रही थी ,"जरा सी आहट होती हैं तो दिल ये कहता हैं......कही ये वो तो नही ........कही ये वो तो नही.........कही ये वो तो नही....."अचानक दरवाजे की घंटी बजी ,पैरो को मानो पंख लग गए ,मैं हवा में उड़ती सी,पुरे उत्साह से भागती हुई दरवाजे तक गई,पुलकित मन से दरवाजा खोला,पर इस बार भी हर बार की तरह घोर निराशा मेरे हाथ लगी,आगंतुक कोई और था वह नही । बुझे मन से,बोझिल कदमो से किचन में आई देखा तो सेंडविच बुरी तरह से जल चुका था ,यह ५ वा सेंडविच था ,२ जले हुए सेंडविच खाने के बाद पतिदेव को अब यह तीसरा जला सेंडविच खाना असंभव प्रतीत हुआ और बहुत पेट भर गया कहते हुए, ऑफिस जाने के लिए निकल गए ।
११ बज चुके थे मुझे अब कुछ कुछ गुस्सा भी आने लगा था,अचानक टेलीफोन की घंटी बजी,आशाओ ने फ़िर एक बार अपने पंख फैलाये,तुंरत फोन उठाया,सामने से आवाज आई ,मी सकू बाई बोलते ...............इसी आवाज को सुनने के लिए मन सुबह से बेचैन था,ह्रदय उत्सुक था,मैंने कानो को पुरा खोल लिया और कहा, बोलो... वह बोली,ऐसा हैं की मेरी तबियत ठीक नही मैं आज और कल नही आउंगी । मानो वज्रपात हुआ मुझपर ,फ़िर भी खुदको सँभालते हुए कहा अच्छा ठीक हैं परसों तो आओगी ?जवाब मिला सोचूंगी ,४-६ दिन में आ जाउंगी ।
११ दिन बीत चुके थे ,मेरा गुस्सा चरम सीमा पर था ,बिचारे पतिदेव और नन्ही बेटी मौन व्रत धारण कर चुके थे ,उन्हें समझ आ गया था की अगर वो कुछ बोले तो इस कामवाली की छुट्टी से उत्प्प्न क्रोधाग्नि उन्हें भी जला देगी ,इस बीच कई बार फोन किए उसे। संदेश मिलता फ़ोन इस व्यस्त हैं ,स्विच ऑफ़ हैं आदि आदि ,१२वे दिन वह आई....
....थकी, हारी, परेशान,मैंने पूछा क्या हुआ?क्यों इतनी छुटीया? ??
न जाने क्या हुआ!!!!!!!!!!वह दनदनाती हुई बोली, देखो मुझसे फालतू सवाल मत पूछा करो, मैं काम छोड़ के जा रही हूँ .................. और वह चली गई ।
फ़िर नई काम वाली आई,ध्यान काम में कम और ताक- झाक में ज्यादा,वैसे भी वह कामवाली लगती नही थी,हाथ में मोबाईल,ब्रांडेड कपड़े ,खुले बाल,सधा हुआ मेकप और निर्धारित मांगे.. मैं हफ्ते मैं २ दिन छुट्टी करुँगी,हर महीने बोनस चाहिए ,रोज़ एक बार नाश्ता चाहिए,निर्धारित काम से एक काम ज्यादा नही करुँगी...
फ़िर भी काम पर रखा, रखनी तो थी ही,चार ही दिनों में उसे पता चल गया की घर में कौनसी चीज़ कहाँ हैं ?कहाँ पैसे हैं,कहाँ कपड़े हैं,कहाँ कागज़ हैं ।
न जाने क्या क्या पूछती रहती ,आप के घर में कौन कौन हैं?सासु माँ की सासु माँ क्या करती हैं,नन्द की जेठानी की लड़की की सासु की बहन की बेटी कैसी हैं?मैं त्रस्त आख़िर मैंने उसे काम पर रखा था ,इसलिए की मेरी संगीत साधना,लेखन आदि के लिए मुझे समय मिल सके,पर यहाँ तो सारा समय इनके जवाब देने में ही जा रहा था,पर कुछ कह नही सकती थी,एक दिन मुझे किसी ने पूछा"राधिका तुम्हारी सहेली के पति के भाई को अच्छी नौकरी मिली?या वह अभी भी दुकान में कम कर रहा हैं? मैं हतप्रभ!!!!!!!!!!!!!!इन्हे कैसे पता?कहा, मिली,पूछ ही लिया; कैसे पता चला ?उन्होंने कहा,तुम्हारी कला बाई ने बताया.
समझ गई कि इस कला बाई को यह कला भी खूब आती हैं, तब से सावधान रहने लगी। कही कुछ निकल न जाए उसके घर में रहते समय मेरे मुंह से। जब वह घर में होती मैं और मेरे पति आपस में बात ही नही करते थे ।
३ महीने काम और फ़िर छुटियो पर छुट्टिया । कभी कोई मर गया हैं,कभी कोई जिन्दा हो गया हैं,कभी किसी कि शादी हैं,कभी कही घुमने जाना हैं ।
हद तो तब हो गई जब मैंने उससे छुट्टिया न करने को कहा और उसने इस धमकी के साथ काम छोड़ दिया कि अब वह किसी बाई को मेरे यहाँ नही आने देगी।
१५-२० दिन नई काम वाली ढूंढ़ते निकल गए,सच कोई काम वाली आने को तैयार ही नही,मैं जब बाहर निकलती,औरते अजीब सी नजरो से मुझे देखती , एक दुसरे के कानों में कुछ कहती,मैं समझ नही पा रही थी की आख़िर हो क्या रहा हैं ?एक दिन हिम्मत करके ऐसे ही एक समूह से जाकर पूछा ,आख़िर उन्हें मुझसे समस्या क्या हैं ?सुनकर मेरे उपर मानो बिजली गिर गई पता चला की उस बाई ने सब जगह यह फैला दिया हैं,की मुझे न जाने कौनसी मानसिक बीमारी हैं,जिसके चलते हर किसी पर चोरी का इल्जाम मढती हूँ और हर छोटी मोटी बात पर हंगामा खड़ा कर देती हूँ ।
अब कही जाकर समझ आई कामवाली बाई से बड़ा न कोई अधिकारी हैं न हो सकता हैं,यह आजकल की सुचना सर्वेक्षण अधिकारी तो हैं ही,साथ ही सब अधिकार प्राप्त सर्वोच्च अधिकारी भी हैं,जो कभी भी, कुछ भी कर सकती हैं । यह महान हैं ,इनकी महानता न शब्दों में कही जा सकती हैं न छन्दों में अभिव्यक्त की जा सकती हैं।
इस सबके बाद एक ही व्रत लिया,चाहे थक के चूर क्यु न हो जाऊ,चाहे लिख पाऊ या न लिख पाऊ,चाहे आसमान टूटे,चाहे जमीन हिले,चाहे कुछ क्यों न हो जाए मैं कभी कामवाली नही रखूंगी ..................
Wednesday, August 20, 2008
Tuesday, August 19, 2008
उफ़ ये बच्चे


आजकल के बच्चे उफ़ !!!!!!!!!
इनका नाम लेने भर से ही अच्छे अच्छो के पसीने छुट जाते हैं,हमें हमारे बचपन के दिन नही याद आते,अलबता हमारी नानी जरुर याद आ जाती हैं,आजकल के बच्चे जैसे झरने का मनमौजी प्रवाह ,सागर की लहरों की ऊँची- ऊँची उठान,जैसे झमाझम बारिश ,जैसे ठंडी हवाओ की मस्त रवानी,आजकल के बच्चे जिनके सामने हम ही नही,सारे संसार के सृजक स्वयं ब्रह्मा भी नतमस्तक हो जाते हैं,ये बच्चे नही, तूफानी नदियाँ हैं.
ये बच्चे ............................
क्या - क्या उपमा दू इन बच्चो को?और क्या- क्या बताऊ इन बच्चो के बारे में,इनकी शैतानियाँ देखकर मेरे तो होश ही उड़ जाते हैं,ये जब अपने रंग में आते हैं दुनिया को रंग जाते हैं,ये जब हसते मुस्कुराते हैं.................................सामने वाले......................................अपनी दशा पर आंसू बहते हैं:-)
तो भई ये हैं किस्सा आजकल के बच्चो का,मेरी १ वर्षीय बेटी कम्प्यूटर ऑन,ऑफ़ करना जानती हैं,उसे पता हैं कि गाना रियलप्लेयर में चलेगा,मेरे हाथ से माउस छीन कर ख़ुद उसे क्लिक करती हैं,मेरे रिश्तेदारों में एक की बेटी का नाम हैं श्रेया,उसके लिए घर,घर नही तोड़फोड़ क्लब हैं,उनके घर में कोई भी चीज़ ठीक नही रही,हर चीज़ के बत्तीस बत्तीस टुकड़े हो चुके हैं।मेरी बेटी, टीवी में मन चाहे चेनल लगाती हैं और मनपसंद गानों पर नाचती हैं,उसे देखकर मुझे चक्कर आ जाते हैं,मैं उसकी उम्र मैं मम्मा की गोद में बैठ कर टसुए बहाया करती थी।
आजकल के बच्चो को पता हैं की किसे कैसे अपना बनाया जाए,सबके सामने कैसे पेश आया जाए, किससे कैसे दोस्ती की जाए,२ क्लास का एक बच्चा!उसे उसके टीचर की पुरी कहानी पता हैं ,कहता हैं उनका तलाक होने वाला हैं,मैं सुनकर भौचक !इन्हे तलाक भी पता हैं? पहली क्लास के अनुज की ७ गर्ल फ्रेंड हैं। ऐसा वह कहता हैं!!!!!!!!!!!!!!!
ये तो छोडिये, जिस उम्र में हम, आप ठीक से बालो की कंघी नही कर पाते थे ,उस उम्र में ये जानते हैं की इन पर कौनसा हेयर स्टाइल सूट करेगा,कब कहा कौनसे कपड़े जचेंगे,३ क्लास की कीर्ति ऐसे सजती हैं की कोई हिरोइन भी उसे देखकर शर्मा जाए ,नन्ही आरोही अभी ठीक से चलना नही जानती पर मेकप ब्रश का इस्तेमाल कैसे करते हैं बखूबी जानती हैं.
जिस उम्र में हम अपने रिश्तेदारों के सामने गाने में शर्माते थे ये बच्चे बड़े- बड़े रियलिटी शो में गाते हैं,जिस उम्र में हम डांस के लिए पैर भी नही उठाते थे ,ये झूम कर नाचते हैं, बड़े बडो को नचवाते हैं ।
हम नाक बहाते हुए मास्टर जी की संटिया खाते हुए पे-पे करते थे, पर आजके बच्चे टीचर को भी चार बातें सिखा देते हें।
धन्य हैं आज के बच्चे।
मुझे तो लगता हैं कि पहले कही, नन्द ग्राम में एक कृष्ण था,कभी किसी एक कन्हैया ने माखन चुराया था ,कोई एक चितचोर था,पर आजकल तो हर घर में कृष्ण हैं,कान्हा हैं,मनमोहन हैं।
अजी यही नही उनसे भी बढ़कर नन्ही- नन्ही मन- मोहनिया हैं,कृष्णइया हैं .ये सब उसी कृष्ण के ग्रुप के सदस्य हैं,उसी के लोक में रहा करते थे अब धरती पर आए हैं,इन सब कृष्ण क्रिश्नियो को मेरा नमन! मैं तो इनके सामने हार चुकी हूँ और एक ही बात कह सकती हूँ । उफ़ ये बच्चे .................उफ़ ये बच्चे .............................................................................
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