जिन्दगी कितनी रहस्यमयी हैं न!हम जान भी नही पाते की हमारी जिंदगी कब,कंहा,कैसा मोड़ ले ले,कभी कभी यह जिन्दगी बिल्कुल फिल्मी लगती हैं,कभी कभी अनजानी,अनोखी,अलबेली.जिन्दगी चाहे कितनी ही बड़ी हो या छोटी हो,उसकी गुणात्मकता इन्सान के लोकप्रिय होने से,उसके पाने से, खोने से,कष्टों से,सुखो से,हार से,जीत से नापी जाती हैं । पहचानी जाती हैं, इन्सान को मिले प्रेम से,कोई नही चाहता की वह ५०० साल जिए वह भी तन्हा,अकेले,कटी पतंग सा,कोई नही चाहता वह असमानों तक पहुचे पर झुंड से बिछडे किसी बेबस पंछी की तरह,कोई नही चाहता वह वह महलो में रहे पर छोटा सा घरोंदा खोकर जहा वह था उसके अपने थे और था प्यार।
इन्सान जो कुछ भी करता हैं उसका अधिकांश हिस्सा वह अपनों का प्यार पाने के लिए अपनों के लिए करता हैं और कभी दूसरो के लिए करता हैं. नाम, धन ,सुख ,संपत्ति से उपर हर इंसानी ह्रदय में एक ही चाह होती हैं एक चुटकी प्यार............................................................................................................ अपनों का प्यार,परायो का प्यार , ईश्वर का प्यार , मनुष्य का प्यार,सृष्टि की गोद में पल रहे हर चेतन का प्यार.....................
तभी तो वह कभी कुत्ता पालता हैं कभी बिल्ली,कभी तोता,कभी तितली,वह जुडा होता हैं निसर्ग से और चाहता हैं निसर्ग के हर पहलु से प्यार,वह जुड़ता हैं आसमान से,नदी से,धरती से, बाटता हैं इनसे अपने सारे दुःख- सुख और बदले में चाहता हैं,इनका अबोला अनभिवय्क्त प्यार।
वह जुड़ता हैं समाज से, डरता हैं समाज से ,वह जुड़ता हैं हम उम्रो से,वृद्धो से,कुछ सुनता हैं उनकी कुछ अपनी कहता हैं,और नख शिख डूब जाता हैं उनके सुख दुःख में, चाहता हैं तो बस थोड़ा सा प्यार। वह जुड़ता हैं बच्चो से,उनके संग खेलता हैं, कूदता हैं,हसता हैं,मचलता हैं,और याद करता हैं,अपने माता पिता का प्यार,अपनी टीचर का प्यार,अपनी बहन की प्यार भरी फटकार । बरसाता हैं हर बच्चे पर मन के अमृत घट में संजोया अमृतमय प्यार।
वह जुड़ता हैं कलाओ से,कभी पानी की कल कल पर कोई गीत लिखता हैं,कभी हवा की सर सर पर कोई ग़ज़ल रचता हैं,कभी ऊँचे पर्वतो पर चढ़ मन पाखी को तृप्त करता हैं,कभी डाली डाली फूलो की कहानी चित्रों की जुबानी कहता हैं,क्योकी वह करता हैं इन सबसे प्यार,कलाओ से प्यार,लेखन से प्यार,चित्रण से प्यार ,संगीत से प्यार...
कभी सोचा हैं ९० साल की उम्र में भी अपनी माँ के हाथ का खाना क्यों पसंद आता हैं,उसकी बनाई कमीज़ का रंग अब भी क्यों चोखा नज़र आता हैं ?क्योंकी उसमे छुपा होता हैं माँ का प्यार।
कभी सोचा हैं आपके २ वर्ष के बच्चे का हसना और रोना आपको आज भी क्यों याद आता हैं ? क्योकी उसमे समाया होता हैं उसका आपके लिए भोला,निस्वार्थ,मधुमय प्यार ।
कभी सोचा हैं किसी दोस्त का दिया बरसो पुराना पेन आज भी दुनिया की अनमोल धरोहर क्यों लगता हैं?क्योकी उसकी नीली स्याही को रंगा होता हैं आपके इन्द्र धनुषी दोस्ती की राह ने ,आपके प्यार ने।
पुरी दुनिया प्यार में बसी हैं और पुरी दुनिया में बसा हैं प्यार, इन्सान की हर छोटी सी छोटी चाहत,फितरत में बसा है प्यार,सब प्यार के दूत हैं और सब प्यार के हकदार। माने एक ही बात वसुधैव कुटुम्बकम!क्योकी हम सब चाहते हैं एक चुटकी भर प्यार ।
Wednesday, August 13, 2008
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8 comments:
हम सब चाहते हैं एक चुटकी भर प्यार ।
कितना सच कहा है आपने! आभार.
राधिका जी ,
हम सब प्यार चाहते हैं, पर सच्चा प्यार मिलता कहाँ है?
हम कितना भी पढ़ लिख लें पर लाबीर दस के हिसाब से अनपढ़ ही रहेंगे, क्योंकि हमारे प्यार स्वार्थी होते हैं. कबीर ने कहा था ........
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित बहा न कोय
ढाई आखर प्रेम का , पढ़े सो पंडित होय
सुंदर भावों, अहसासों की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
चन्द्र मोहन गुप्त
बहुत शानदार पोस्ट है. मानव-मन पर आपकी पकड़ अद्भुत है....
अक्सर ऐसा होता है कि सुबह आफिस जाते हुए रास्ते में एक स्कूल के सामने ढेर सारे 'सरदार' बच्चों को देखता हूँ. सारे सर पर पटका बांधे हुए. इच्छा होती है कि वहां रुककर दो मिनट उनके बीच खडा रहूँ. सुबह-सुबह बच्चों को स्कूल जाता देख बहुत प्यार आता है. कोई बच्चा सो रहा है...कोई बच्ची रो रही है....सारे एक-एक चुटकी प्यारा देते हुए जाते हैं.
आपको मेरी तरफ़ से एक चुटकी प्यार..
-खेतेश्वर
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congratulation
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राधिका बुधकर
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