Friday, July 18, 2008

गुरु





शास्त्रों में गुरु की महिमा का अखंड वर्णन किया गया हैं,उसे ब्रम्हा विष्णु महेश्वर कहा गया हैं,ब्रम्हा इसलिए क्युकी वह सृजनकर्ता होता हैं एक मानव को ,शिष्य को घ्यान,संस्कार,व् गुणों से सुसज्जित कर वह उसे सच्चे अर्थ में मनुष्य बनाता हैं.विष्णु जो पालन करता हैं,प्राचीनकाल में गुरु ग्रह में विद्यार्थी गुरु की सेवा करते थे और उन्हें शिक्षा दे उनका पालन पोषण भी गुरु ही करता था,महेश्वर!जो सृजन के साथ विलय भी करता हैं,गुरु महेश्वर इसलिए क्युकी शिष्य के दुर्गुणों का संहार करता था,अपनी वाणी,उपदेश द्वारा विद्यार्थी के दुर्गुणों उसकी कमियों को प्रेम सेक्वाचित क्रोध से दूर करता था.समय बदला,गुरु बदले शिक्षा पध्धति बदली,हम गुरु पौर्णिमा की जगह टीचर्स डे को ज्यादा धूमधाम से मानाने लगे,परन्तु गुरु की महिमा कम नही हुई,आज भी गुरु ब्रह्मा,विष्णु,महेश हैं.


प्रश्न हैं की हमारा गुरु कौन?वह जिसने हमें बचपन से हसना, बोलना चलना उठना बैठना खाना पढ़ना सिखलाया?यानि हमारी माँ.या वह जिसने हमें जीवन का अर्थ समझाया,आदर्शो व् संस्कारो से हमे परिपूरण किया?हमारे पिता.या वह जिन्होंने हमें स्कूल में विभिन्न विषयों का घ्यान करवाया?या वह जिसने हमें किसी विशेष विधा में पारंगत किया?


ये सभी तो गुरु हैं पर क्या एक व्यक्ति के सिर्फ़ इतने ही गुरु होते हैं?जीवन विशाल हैं,और घ्यान की कोई सीमा नही,व्यक्ति जनम से लेकर मृत्यु तक सतत कुछ न कुछ सीखता रहता हैं,और उसके गुरु भी अनगिनत होते हैं.गुरु वह हैं जो मार्गदर्शन देता हैं,पथप्रदर्शन करता हें,जीवन से जुड़ी छोटी बड़ी बाते हमें सिखलाता हें.

आकाश,चाँद सितारे,पर्वत,नदी,पानी,वर्षा,बादल,पुष्प,वृक्ष,सूर्य,पंछी,जानवर,तक मनुष्य के गुरु हैं,जो व्यक्ति हमें जाने अनजाने छोटी सी बात सिखाता हैं वह भी हमारा गुरु हैं,कभी किसी व्यक्ति के जीवन से भी हम बहुत कुछ सीखते हें,हम स्वयं भी अपनी भूलो से अनुभवों से कुछ न कुछ सीखते हें.तो यह सब भी हमारे गुरु हुए,हम भी अपने गुरु हुए.

अत: आकाश के सारे अवयवों,धरती के सारे जड़ चेतन तत्वों,पंछी,नदी,सागर,पर्वत,सहित सभी देवो,व् सभी मनुष्यों को मेरा शत शत प्रणाम.