Wednesday, August 13, 2008

एक चुटकी प्यार

जिन्दगी कितनी रहस्यमयी हैं !हम जान भी नही पाते की हमारी जिंदगी कब,कंहा,कैसा मोड़ ले ले,कभी कभी यह जिन्दगी बिल्कुल फिल्मी लगती हैं,कभी कभी अनजानी,अनोखी,अलबेली.जिन्दगी चाहे कितनी ही बड़ी हो या छोटी हो,उसकी गुणात्मकता इन्सान के लोकप्रिय होने से,उसके पाने से, खोने से,कष्टों से,सुखो से,हार से,जीत से नापी जाती हैंपहचानी जाती हैं, इन्सान को मिले प्रेम से,कोई नही चाहता की वह ५०० साल जिए वह भी तन्हा,अकेले,कटी पतंग सा,कोई नही चाहता वह असमानों तक पहुचे पर झुंड से बिछडे किसी बेबस पंछी की तरह,कोई नही चाहता वह वह महलो में रहे पर छोटा सा घरोंदा खोकर जहा वह था उसके अपने थे और था प्यार।

इन्सान जो कुछ भी करता हैं उसका अधिकांश हिस्सा वह अपनों का प्यार पाने के लिए अपनों के लिए करता हैं और कभी दूसरो के लिए करता हैं. नाम, धन ,सुख ,संपत्ति से उपर हर इंसानी ह्रदय में एक ही चाह होती हैं एक चुटकी प्यार............................................................................................................ अपनों का प्यार,परायो का प्यार , ईश्वर का प्यार , मनुष्य का प्यार,सृष्टि की गोद में पल रहे हर चेतन का प्यार.....................

तभी तो वह कभी कुत्ता पालता हैं कभी बिल्ली,कभी तोता,कभी तितली,वह जुडा होता हैं निसर्ग से और चाहता हैं निसर्ग के हर पहलु से प्यार,वह जुड़ता हैं आसमान से,नदी से,धरती से, बाटता हैं इनसे अपने सारे दुःख- सुख और बदले में चाहता हैं,इनका अबोला अनभिवय्क्त प्यार।

वह जुड़ता हैं समाज से, डरता हैं समाज से ,वह जुड़ता हैं हम उम्रो से,वृद्धो से,कुछ सुनता हैं उनकी कुछ अपनी कहता हैं,और नख शिख डूब जाता हैं उनके सुख दुःख में, चाहता हैं तो बस थोड़ा सा प्यार। वह जुड़ता हैं बच्चो से,उनके संग खेलता हैं, कूदता हैं,हसता हैं,मचलता हैं,और याद करता हैं,अपने माता पिता का प्यार,अपनी टीचर का प्यार,अपनी बहन की प्यार भरी फटकारबरसाता हैं हर बच्चे पर मन के अमृत घट में संजोया अमृतमय प्यार।

वह जुड़ता हैं कलाओ से,कभी पानी की कल कल पर कोई गीत लिखता हैं,कभी हवा की सर सर पर कोई ग़ज़ल रचता हैं,कभी ऊँचे पर्वतो पर चढ़ मन पाखी को तृप्त करता हैं,कभी डाली डाली फूलो की कहानी चित्रों की जुबानी कहता हैं,क्योकी वह करता हैं इन सबसे प्यार,कलाओ से प्यार,लेखन से प्यार,चित्रण से प्यार ,संगीत से प्यार...

कभी सोचा हैं ९० साल की उम्र में भी अपनी माँ के हाथ का खाना क्यों पसंद आता हैं,उसकी बनाई कमीज़ का रंग अब भी क्यों चोखा नज़र आता हैं ?क्योंकी उसमे छुपा होता हैं माँ का प्यार।

कभी सोचा हैं आपके वर्ष के बच्चे का हसना और रोना आपको आज भी क्यों याद आता हैं ? क्योकी उसमे समाया होता हैं उसका आपके लिए भोला,निस्वार्थ,मधुमय प्यार

कभी सोचा हैं किसी दोस्त का दिया बरसो पुराना पेन आज भी दुनिया की अनमोल धरोहर क्यों लगता हैं?क्योकी उसकी नीली स्याही को रंगा होता हैं आपके इन्द्र धनुषी दोस्ती की राह ने ,आपके प्यार ने।

पुरी दुनिया प्यार में बसी हैं और पुरी दुनिया में बसा हैं प्यार, इन्सान की हर छोटी सी छोटी चाहत,फितरत में बसा है प्यार,सब प्यार के दूत हैं और सब प्यार के हकदार। माने एक ही बात वसुधैव कुटुम्बकम!क्योकी हम सब चाहते हैं एक चुटकी भर प्यार

जाने क्या चाहे मन बावरा

मन संसार की सबसे बड़ी पहेली,मन संसार का सबसे जटिल तत्व,मन विचारो कि झुरमुट में बसी एक छोटी सी झील,मन ................बस मन!
मन कब क्या चाहे कोई नही जानता,क्यो इतने सवाल पूछे यह भी कोई नही जानता,मन मनुष्य का सबसे सगा मित्र,मन ही आत्मन,मन ही ईश्वर।

मन न जाने कब गुनगुनाये,कब छोटे बच्चो कि तरह न जाने क्या जिद्द कर जाए?मन कभी ज़मी पर कभी आसमा पर कभी तितली बन पेडो कि शाखों पर,कभी मछली बन लहरों कि हिलोरो पर,मन कभी मुस्कुराता हुआ,कभी बिन बात रोता हुआ,कभी हसता हुआ ,कभी सुनाता हुआ,मन कि महिमा मन ही जाने ।

इस मन को समझने के लिए न जाने कितने ऋषि मुनियों ने युगों युगों तक तपस्या की ,न जाने कितने ग्रंथो का वाचन किया,न जाने कितने तीरथ धाम घूम लिए,इस मन के चक्कर में न जाने कितने गृहस्थ साधू हो गए,न जाने कितने आश्रम गुरुकुल खुल गए,पर ये मन और इसकी चाहत फ़िर भी कोई नही समझ पाया।

कहते हैं मन पर काबू रखो,इसे नियंत्रण में रखो पर भाई ये तो हवा हैं,इसे कौन रोक पायेगा?तूफानी नदिया हैं बाँध भी टूट जाएगा,मन पंछी हैं,हर मौसम उड़ता जाएगा,मन लोकगीत हैं अनजाने ही स्फुटित हो जाएगा ।

कौन समझ पाया हैं मन की माया ?हम उसे पूर्व मैं ले जाना चाहते हैं और वह जाता हैं उत्तर में ,हम उसे अपनी समझाते हैं वह हेम अपनी ही धुन पर नचवाता हैं ।

मन सबसे कुछ अलग हैं,वह अद्भुत हैं आलौकिक हैं,अनादी हैं,मन श्रृंगार हैं, वात्सल्य हैं, मन एक बूंद हैं जीवनदाई जल सी,मन सागर हैं,मन प्रेम हैं ,मन आनंद हैं।

मन को पुरी तरह कोई न समझ सका न समझ पायेगा ,मन पर कोई पहरे न बिठा सका न बिठा पायेगा,क्योकी मन स्वयम्भू हैं, मन ही शिव हैं मन ही राम है वह हमारी आत्मा का हिस्सा हैं,मन त्रिगुनो त्रिलोको तीर्थो से परे हैं, मन परे हैं चतुर्वेदो से ,धर्मो से,दर्शनों से।

मेरी नज़र में मन ही एकमात्र सच्चा मित्र हैं मानव का,इसलिए जब भी लगे जाने क्या चाहे मन बावरा... तो दिमाग चलाना बंद करे,खुदको एकदम चुप करे और सुने मन की,उसकी कही करे ,मन के नाम पर स्वछंदता की मैं हिमायती नही,पर सबसे प्रेम करे,सारी धरणी को मन से चाहे ,फ़िर मन आपको कभी नही भटकायेगा,सच कहे तो वह कभी नही भटकाता,भटकते हम हैं और दोष देते हैं मन को,मन जैसा कोई संगी नही साथी नही सरल नही,अपने मन से पूछे और जिन्दगी की हर परेशानी को दूर करे,मन की माने,उसकी चाहतो को जाने,और कहे -- मन की बात बताऊँ मैं मन की बात बताऊँ क्या -क्या बात उठत मन मोरे सब कह कर समझाऊँ मैं मन की बात बताऊ।