Friday, August 29, 2008

रहने को घर नही



राम, श्याम दो भाई बरसो के बिछडे हुए,अचानक एक दिन किसी शहर में ,किसी अनजानी राह मैं मिलते हँ ,श्याम राम से पूछता हैं ... ...मेरे पास कार हैं,बेंक बेलेंस हैं,माँ हैं ,बीबी हैं ,बच्चे हैं ,प्लाज्मा टीवी हैं,फ्रीज़ हैं,एसी हैं,कंप्यूटर हैं ,मोबाईल हैं,बीबी के पास गहने हैं,नौकर चाकर हैं,नाम हैं ,इज्जत हैं ,ऑफिस में बड़ा सा केबिन हैं,तुम्हारे पास क्या हैं ??????????????????????????????????????????????????
राम पल भर की चुप्पी के बाद ....................मेरे पास...................मेरे पास ....... मेरे पास ........... .......मेरे पास
................................................. अपना एक छोटा सा घर हैं .

श्याम चुप !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

आज स्थिति बिल्कुल यही हैं,सुख सुविधा की सारी वस्तुए मौजूद हैं ,जेब में भर भर के पैसा मौजूद हैं,बाज़ार घर सजाने के लिए लगने वाली सारी चीजों से भरा पड़ा हैं,जोश -जोश में एक सोफा सेट,डाइनिंग सेट, किताबो की अलमारी ,बच्चे का बिस्तर ,दो-चार पेंटिंग्स ,म्यूजिक सिस्टम,चार -छ: हेंडीक्राफ्ट आईटम हम भी खरीद लाये ,घर आकर याद आया कि ये सारा सामान रखेंगे कहाँ?घर में ???????????????????????????????????????

घर जिसे हम आधुनिक युग में घर कहते हैं ,वस्तुत: एक या दो कमरों का ऐसा वास्तु संयोजन होता हैं जिसमे रसोई से लेकर ,बैठक तक सब कुछ जमाया गया होता हैं .यह बात अलग हैं की उस संयोजन में कला कम हैं और मज़बूरी अधिक .

यह कहानी घर घर की हैं ,कि रहने के लिए किसी के पास अपना घर नही हैं ,बंगला और टेनामेन्ट जैसे शब्द तो अब दुर्लभ शब्द के पर्यायवाची बनते जा रहे हैं,अब तो एक दो कमरों का फ्लैट भी मिल जाए तो ईश्वर कि कृपा हैं .दो कमरे भी बहुत हो गए,एक कमरे में ही सारी गृहस्थी बसानी पड़ती हैं .

घरो के दाम आसमान छू रहे हँ,कयोकी कभी सीमेंट महंगा हो गया हैं तो कभी रेत महँगी हो गई हैं,कभी ट्रांसपोर्ट पर ज्यादा खर्च आता हँ,तो कभी कुछ और समस्या आगयी हैं.

एक समय था जब कुछ हो या न हो हर व्यक्ति के पास अपना एक घर जरुर होता था,और जो थोड़े अमीर थे उनके पास तो बडे बडे घर हुआ करते थे ,मराठी लोग जिसे वाडा कहते थे ,यानि इतना बड़ा घर कि 10-12 रिश्तेदारो के परिवार आराम से एक ही घर में रह ले . अब तो जब संयुक्त परिवार टूट गए हैं एकल परिवारों के पास रहने के लिए अपना एक छोटा सा घर भी नही हैं .बड़े शहरो में ठीक - ठाक फ्लैट यानि कुछ करोड़ ...............................................

अपने घरो कि तो बात ही भूल जाए , किराये का घर भी लेना हो वह भी एक कमरे वाला तो 60-70 हज़ार का तो डिपोजिट ही देना पड़ता हैं,उपर से 10-15 हज़ार का किराया ........................

एक मध्यम वर्गीय ,उच्चमध्यम वर्गीय परिवार के लिए हर महीने ये रकम अपनी तनख्वाह से ,बज़ट से निकलना कितना मुश्किल होता हैं ,यह सभी जानते हैं .

मैं जब छोटी थी,तो स्कूल जाते समय एक रास्ते पर कुछ गरीब परिवार रहते थे ,बिचारे सड़क के एक किनारे छपरा डाल कर ,या दो ईटों कि भींत सी बनाकर एक कमरे नुमा घर में रहा करते थे.मैं हमेशा सोचती और बडो से पूछती थी कि कैसे ये लोग इतनी सी कुटिया में अपने पुरे परिवार के साथ रह लेते हैं,उनकी आवासीय कठिनाई को सोच कर मन दुखी हो जाता था ,तब पता नही था कि आज से कुछ साल बाद यह समस्या सभी को आने वाली हैं .

कुछ दिन पहले एक विघ्यान मासिक में एक आलेख प्रकाशित हुआ था,सन २०२० में कैसी होगी दुनिया विषय पर,उसमे लिखा था कि २०२० तक हवा में घर बनेंगे ,मैंने सारी कल्पनाये कर ली कि कैसे घर होंगे ,कैसे जायंगे ,आदि आदि .

कल्पना तक ठीक लगा ,पर यथार्थ में यह कितना अजीब होगा ?इसकी कल्पना भी आगयी . सच स्थिति यही हैं,घर कहा बनाये,जमीं ही नही ,समुन्दर तक पर भी घर बना डाले हैं ,यह जानते हुए भी कि यह निसर्ग के कितना विरुध्द हैं ,ऊँची ऊँची - ३०-३०मन्जिला इमारते बन गई हैं ,क्योकि जमीं कहा से लाये ?रहने की जगहों पर बड़े बड़े शौपिंग मॉल बना डाले हैं ,मल्टीस्टोरी काम्प्लेक्स ,होटल बना डाले हैं ,अब या तो मॉल में रहो या ,होटल में,क्योंकि घर तो हैं ही नही,जिनके पास घर हैं उनकी चांदी हैं , और जो मकानमालिक हैं उनके पास तो सोना ही सोना हैं .

किया क्या जा सकता हैं...?????
......तो किया यह जा सकता हैं कि हर शहर का एक तो पुनर्वसन किया जाए,किस शहर में कितने मॉल,होटल,कॉमर्शियल काम्प्लेक्स हो सकते हैं उनकी एक सीमा निर्धारित की जाए,आवासीय जमीं जहाँ लोगो के घर हैं ,उनके कमर्शियल उपयोग के लिए बेचने पर पाबन्दी लगायी जाए, जिसके पास धन हैं और एक से अधिक घर हैं ,वह कितने घर खरीद सकता हैं ?यह तय किया जाए,घर अधिक से अधिक कितना बडा होना चाहिए उनका दायरा निश्चित किया जाना चाहिए,शहर में जहाँ लोग रहते हो वह हिस्सा और जहाँ बाज़ार हो वह हिस्सा अलग अलग होना चाहिए, माकन मालिक कितना किराया वसूल सकते हैं यह भी कही न कही देखा जाना चाहिए .इसके आलवा भी और अधिक विचार कर उपाय खोजे जाने चाहिए .तभी यह समस्या कम हो सकती हैं . - आख़िर हम सब गाते हैं


थोडीसी जमीन , थोडा आसमान
तिनकों का बस एक आशियाँ

माँगा हैं जो तुम से वो ज्यादा तो नहीं है
मेरे घर के आँगन में , छोटा सा झूला हो
सौंधी सौंधी मिट्टी हो , लेपा हुआ चूल्हा हो