Monday, August 18, 2008

वैधव्य:-स्त्री प्रताडना का एक और हथियार


सावनी २७ वर्षीय महिला,जिसके दो बच्चे हैं मुग्धा और कैवल्यप्राची 4 साल की और कैवल्य साल का ,तक़रीबन
साल पहले सावनी और सुहास का विवाह हुआ था,सावनी माता पिता की एकलौती बेटी और सुहास दो भाइयो में सबसे बड़ा,घर में धन सम्पत्ति की कोई कमी नही ख़ुद सुहास भी एक मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी पोस्ट पर कार्यरत था ,सावनी घर में लाडली होने से कभी कोई जिम्मेदारी उस पर नही पड़ी,माता पिता ने उसे जो चाहा दिया,जब उसने सुहास से शादी करने की बात कही तो उसके लिए भी माता पिता तुंरत राजी हो गए,वैसे सावनी अच्छी चित्रकार थी,मास्टर ऑफ़ कंप्यूटर इंजिनअर थी,पर सुहास की पत्नी बनकर उसने मानो सारी खुशिया पा ली थी,सास को यह रिश्ता कभी स्वीकार नही था सो सुहास और सावनी उनकी हरेक बात चुप ही सहते रहे,सावनी को सुहास का साथ था इसलिए कभी किसी बात का कोई गम नही हुआ.सब कुछ कुल मिलाकर अच्छा ही चल रहा था. पर ईश्वर सबको पुरी खुशी कहाँ देता हैं? बेटा साल भर का हुआ और सुहास की तबियत बहुत ख़राब रहने लगी,टेस्ट में ब्लड कैंसर निकला,वह अपनी थर्ड स्टेज में था,सारे प्रयत्न कर लिए गए,पैसा पानी की तरह बहाया गया,घर,कार,सामान ,सब बिक गया पर सुहास नही बच सका.रोते रोते सावनी ने बी एड किया,पर अच्छी नौकरी नही मिली,एक साधारण स्कूल में वह आज शिक्षिका हैं,जो बच्चे कभी अच्छे से अच्छे ब्रांडेड कपड़े पहनते थे वे आज दूसरो के दिए कपड़े पहनने को मजबूर हैं,जिनकी कोई फरमाइश कभी अधूरी नही रही वह आज मनपसंद सब्जी खाने को भी तरस रहे हैंसास अब सावनी पर निर्भर हैं,ससुर बीमार हैं अपनी तनख्वाह में से बड़ा हिस्सा उनके इलाज में लगा रही हैं,सावनी जी रही हैं, अपने बच्चो के लिए,उसकी अपनी कोई ख्वाहिश नही, तिस पर सास के यह बोल की तेरी वजह से मेरा बेटा मर गया,वह जी रही हैं क्युकी ईश्वर ने उसे जिन्दा रखा हैं.

हमारे देश में आज सावनी की तरह जाने कितनी महिलाये हैं जो वैधव्य के अभिशाप को भोग रही हैं, जाने कितनी लड़किया हैं जो कम उम्र में विधवा होकर अपनी सारी जिन्दगी किसी तरह काट रही हैं,उनके लिए सजना- सवरना अवैध हैं,वह हमउम्र महिलाओ के साथ कही बहार घुमने नही जा सकती,वह किसी पूजा में भाग नही ले सकती,और जाने कितनी पाबंदिया.............................
समाज हमेशा स्त्री को ही क्यों छलता रहा हैं?हर बार स्त्री ही क्यों शिकार होती रही हैं?कभी विधवा होकर,कभी सधवा होकर,उसके दुर्भाग्य के रूप अलग अलग हैं,पर हर बार दुर्भागी वही हैं

आज हमारा समाज कितना शिक्षित हो गया हैं,फ़िर भी ऐसा नही हैं की इस तरह की बातें सिर्फ़ अनपढ़ परिवारों में ही होती हैंदुःख की बात यह हैं की यह बातें उन परिवारों में भी होती हैं जो ख़ुद को बड़ा आधुनिक कहते हैं,मुझे समझ नही आता की स्त्री का उसके पति से बिछड़ने का दुःख क्या कम होता हैं?कि जैसे तैसे वह ख़ुद को सँभालने का प्रयत्न करती हैं,तो उसको बार बार यह याद दिलाया जाता हैं की वह विधवा हैं ,उसे साज श्रृंगार की अनुमति नही हैं,उसे ज्यादा रंगीन कपड़े पहनने की,बिंदी लगाने की,यहाँ तक की आभूषण पहनने की भी अनुमति नही हैं,वह मन्दिर तो जा सकती हैं पर देवी के चरणों में हल्दी कुमकुम नही चढा सकती,जो हल्दी कुमकुम बचपन से उसके सतत साथ था वह अचानक उसके लिए वर्ज्य हो गया हैं,जो मंगल सूत्र वह विवाह के दिन से गले में पहने थी अचानक उसके लिए त्याज्य हो गया हैं,उसके दुसरे विवाह की बात तो अश्र्वनीय ही हैं, यह सब क्या हैं?एक औरत कितनी विरोधाभासी जिन्दगी जिए?
हर लड़की अपने पति से बहुत प्रेम करती हैं उसके चले जाने से जितना फर्क उसे पड़ता हैं शायद और किसी को नही पड़ता,सब दुखी होते हैं,परेशान होते हैं,पर हर किसी की जिन्दगी कुछ समय बाद पूर्ववत होने लगती हैं,पर वह लड़की जिसने अपना पति खोया हैं ,उसके जैसा अकेलापन,खालीपन शायद ही किसी और की जिन्दगी में आता हैं

हम सभ्य समाज के लोग हैं,हम बुध्धिमान हैं ,विवेकशील हैं,फ़िर भी हम चाहके भी उनके लिए कुछ नही कर पाते? रजा राम मोहन राय ने विधवा पुनर्विवाह के लिए जाने कितने प्रयतन किए,पर आज भी जाने कितनी महिलाये हैं जो विधवा हैं अकेली हैं,जो स्त्रिया स्वयं दूसरा विवाह नही करना चाहती उनका तो ठीक हैं,पर जो चाहकर भी नही कर पाती उनका क्या?

स्त्री स्वभाव ही ऐसा हैं कि उसे गहनों से अत्यधिक प्रेम होता हैं,वह बचपन से खुदको आईने में देखकर सजती सवरती मुस्कुराती हैं,पति कि मृत्यु के बाद उसका मन टूट जाता हैं कुछ समय के लिए वह भी इन सबसे विरस हो जाती हैं,पर मन कभी एक जैसा तो नही रहता !क्या उसे कभी अच्छा पहनने ओढ़ने कि इच्छा नही हो सकती?

हमारे यहाँ पुनर्जनम पर विश्वास करने वाले बहुत लोग हैं,कहते हैं,विवाह कई जन्मो का बंधन हैं,पर एक जन्म का साथ छुट जाने पर मंगलसूत्र पहनना वर्जित कर देना मेरी समझ से परे हैं

हमारे समाज में ये कैसी विसंगतिया हैं?हम में से कोई उन स्त्रियों के बारे में विचार कर अगर ऐसी बात करता हैं तो हमारे बुजुर्ग हमे अच्छी तरह से डांट पिलाते हैं,और चुप करवा देते हैं,कब हमारे समाज में विधवा स्त्रियों को भी खुश रहने का,हँसने का खिलखिलाने का,गुनगुनाने का अधिकार मिलेगा?
पता नही ........पर कम से कम हमे इस बारे में गंभीर रूप से सोचना तो चाहिए,हमारे आस पास कि उन दुर्देवी स्त्रियों के लिए एक कोशिश तो करनी ही चाहिए ,वरना वैधव्य रूपी स्त्री प्रताडना का हथियार जाने कितनी मासूम विधवाओ से उनके जिन्दगी जीने का हक छीन लेगा .