Thursday, July 24, 2008




वो  कागज़  की  कश्ती
ये  दौलत  भी  ले  लो , ये  शोहरत  भी  ले  लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती , वो बारिश का पानी


स्वर्गीय श्री सुदर्शन फाकिर साहब की लिखी इस गजल ने बहुत प्रसिद्धि पाई,हर व्यक्ति चाहे वह गाता हो या गाता हो,
इस ग़ज़ल को उसने जरुर गुनगुनाया,मन ही मन इन पंक्तियों को कई बार दोहराया.
जानते हैं क्यु?क्युकी यह ग़ज़ल जितनी सुंदर गई गई हैं,सुरों से सजाई गाई गई हैं,उससे भी अधिक सुंदर इसे लिखा गया हैं,
इसके एक एक शब्द में हर दिल में बसने वाली जाने कितनी ही बातो ,इच्छाओ को कहा गया हैं

हम में से शायद ही कोई होगा जिसे यह ग़ज़ल पसंद नही आई इसकी पंक्तिया सुनकर उनके साथ गाने और
फ़िर कही खो जाने का मन नही हुआ होगा,या वह बचपनs की यादो में खोया नही होगा
बचपन!मनुष्य जीवन की सर्वाधिक सुंदर,कालावधि.बचपन कितना निश्छल जैसे किसी सरिता का दर्पण
जैसा साफ पानी,कितना निस्वार्थ जैसे वृक्षो,पुष्पों,और तारों का निस्वार्थ भाव समाया हो,
बचपन इतना अधिक निष्पाप,कि इस निष्पापता की कोई तुलना कोई समानता कहने के लिए,
मेरे पास शब्द ही नही हैं


बचपन
बारिश कि रिमझिम फुहारों सा,बहती नदी के पानी पर खेलती सूरज कि जोतिर्म्यी किरणों सा,चाँद कि शीतल रोशनी सा,
सुंदर झिलमिल सा,ठंडी ठंडी पवन सा बचपन ,बर्फीली चादरों से ठके पर्वतो पर किसी एक नन्हे से पौधे सा,
सागर में पलते,सीपी में बसते,कई रंगों कि छटाओं के मोती सा,कभी छुईमुई के पौधे सा,कभी निलवर्णी
कमल सा,कभी वासंती फूलो सा,कभी खट्टे खट्टे नीबू सा,बचपन ,प्यारा बचपन


हम सब भी कभी बच्चे थे,कुछ नटखट,कुछ प्यारे,कुछ जिद्दी,कुछ समझदार,पर थे बच्चे!भोले भाले,सुंदर
और दिल के सच्चे बच्चे,कितने ही खेल खेले होंगे हमने!कभी लुका छिपी,कभी नीली परी आना,कभी घर घर
कभी दौड़ भाग के,कभी किसी दोस्त के घर पर जाकर,कभी अपने ही घर की छत पर ,कभी हसे होंगे,कभी रोये होंगे,
कभी दोस्तों से गले मिले होंगे,कभी झगडे होंगे,एक दुसरे से कुट्टी कर बैठे होंगे,तो अगले ही पल मुस्कुरा कर
अपनी प्रिय मिठाई बाटी होगी


ये सब किया हैं हमने?क्यु थे हम इतने खुश इतने बेफिक्र इतने सहज?और क्यु हो गए हैं अब इतने परेशान
इतने फिक्रमंद इतने असहज?

सोचा हैं कभी इस बारे में?शायद आप में से बहुतो ने सोचा हो,और ख़ुद से कहा हो की अब हम बड़े हो गए,
घर परिवार हैं हमारा, जाने कितनी जिम्मेदारिया हैं हम पर,कितनी मुश्किलों का सामान करना पड़ता
हैं एक ही दिन में,घर ऑफिस,और ऊपर से रिश्ते नातो की बंदिशे,उन्हें भी निभाना पड़ता हैं

पर क्या आपने कभी सच्चे दिल से सोचा हैं की एसा क्यु हुआ?

इसलिए नही की हम पर जिम्मेदारिया गई हम बड़े हो गए आदि आदि
बल्कि इसलिए क्युकी हमने हमारे अन्दर ह्रदय के किसी कोने में छुप कर बैठा हुआ बच्चा दबा दिया,उसे
डाट कर चुपचाप एक कोने में बिठा दिया,शांत कर दिया अपने दिल में उठने वाली आनंद और प्रेम से भरी उन सवेदनाओ को जो हमें
सरल,सहज और सुखी बनाये थी,हमने ओढ़ ली बड़प्पन की चादर,धीर गंभीर कर्तव्य दक्ष , श्रेष्ठ
माँ,भाई, बहन, बेटी, पुत्र, पति ,पत्नी ,पिता, मित्र, गुरु इत्यादि की भूमिका अदा करने करने के लिए अपने अन्दर के उस नन्हे मुन्ने बच्चे
को कही दूर छोड़ दिया,पर वो नटखट कही नही गया,वो हमारे अंतर्मन में बस गया,और कभी कभी अचानक
हमारे मन के दरवाजे पर दस्तक देकर कहता हैं,मुझे बहार निकालो प्लीज़ मुझे बहार निकालो

हम आज इतने वयस्त हैं,इतने आगे बढ़ चुके हैं की अब उस बच्चे के लिए तो हमारे पास वक्त हैं हमारे रुतबे, ओहदे, स्तर को यह
शोभा देता हैं की हम फ़िर वह हो जाए

पर हम सब कुछ होकर सुखी नही हैं,पैसा हैं ,प्रेम हैं,नाम हैं ,इज्जत हैं पर खुशी फ़िर भी कही खो सी गई हैं क्यु?
क्युकी हम अपने अन्दर के बच्चे पर बहुत अन्याय कर रहे हैं

हम क्यु नही हो सकते फ़िर बच्चा?क्यु नही बच्चो की तरह सरल हो सकते,उनकी ही तरह हर बात में निश्छल हँस सकते ?
क्यु नही हम रोकर फ़िर सारे दुःख भूल कर फ़िर मुस्कुरा सकते?क्यु नही हम बच्चो वाले सारे खेल खेल सकते,हम बच्चा क्यु नही हो सकते?

ऐसा करने में कोई बुराई नही,दुनिया के किसी संविधान ने हमें ऐसा करने से रोका नही यह बचपना नही,जीवन
का सच्चा आनंद लेने की कला हैं,भगवान ने बच्चे इसलिए बनाये की हम बढती उम्र में भी उनके साथ
छोटे बने, खेले ,कूदे स्वयं को सतत उत्साही बनाये रखे,और इस कठिन जीवन की हर बात मैं अगर हम
बच्चो की तरह हँसते गाते सतत आनंदी रहना सिख ले,छोटी छोटी बातो में बहुत खुश होना सिख ले,कभी जी भर कर शरारते करे,तो जीवन बहुत सरल
और सुंदर हो जाएगा,हम कभी तनाव के शिकार नही होंगे,नही हमारे पास कोई कमी रहेगी,हम आगे बढ़ेंगे,जियेंगे और सच्चे अर्थो में
जियेंगे,क्युकी तब हम फ़िर बच्चा हो जायेंगे जो सबसे प्रेम करता हैं,सदा मुस्कुराता हैं,जीवन के सही मायने हमें बताता हैं
और फ़िर क्या गायेंगे?

"ये कागज़ की कश्ती ये बारिश का पानी"
कोशिश करके देखिये आप को जरुर बहुत मजा आएगा


तस्वीर द्किमअगेस.कॉम से साभार ली गई


1 comment:

Demo Blog said...

very true,natural,beautiful writing..

one more DTH (Direct to Heart) writing..