Monday, August 25, 2008

क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ?


फ़िल्म तारे जमीं पर बहुत अधिक लोकप्रिय हुई ,न जाने कितने बच्चे-बुढे इस सिनेमा को देखकर रोने लगे,न जाने कितनो को अपना बचपन याद आया,और यह गाना ..............."मैं कभी बतलाता नही ,पर अंधेरे से डरता हूँ मैं माँ ,भीड़ मैं यु न छोडो मुझे,घर लौट के भी आना पाऊ माँ,क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ..................
इस गीत बोलो ने सभी के अंतर्मन को छू लिया, एक बेटे की माँ को करुण पुकार ..मानो हर मन की बात इस गीत के शब्दों में कही गई हो ।

संसार में हर एक इन्सान को ईश्वर की और से मिलने वाला सबसे सुंदर रिश्ता होता हैं माँ का .माँ मानो माँ नही होती वह सारी उपमाओ,नामो,संघ्याओ से परे एक ऐसा दिव्य ईश्वरीय तत्व होता हैं जो हर व्यक्ति के लिए अनमोल होता हैं।

बचपन में माँ जब मेरे साथ होती थी तो लगता था जैसे एक सुरक्षा आवरण मेरे चारो और फैला हुआ हैं,एक अलग ही तरह की ज्योतिर्मयी रश्मिया मैं अपने चारो और महसूस करती थी,और महसूस करती थी सुरक्षा ।
मुझे लगता हैं कि हर बच्चे के लिए माँ यही स्थान रखती हैं,उसे माँ के पास होते समय बहुत अच्छा महसूस होता हैं,उस समय वह सारे संसार का राजा होता हैं,और कोई उसका कुछ नही बिघाड सकता ।

समय बहुत बदल गया हैं ,आज स्त्रियों ने भी उच्च शिक्षण प्राप्त कर लिया हैं ,और वे भी ऊँचा कैरियर कर नाम कमा रही हैं ,दिनों दिन महंगाई बढती जा रही हैं और पैसे कि जरूरते भी । इस कारण भी स्त्रियों को मज़बूरी में नौकरिया करनी पड़ रही हैं ।पर वो जो अभी नन्हा बच्चा हैं ,जो अभी ठीक से चलना,भागना भी नही जानता हैं ,जो अभी तक अपने सारे काम तक नही करना जानता हैं वो क्या जाने कि जिन्दगी कितनी कठिन हैं और माँ को कैसे ह्रदय पर पत्थर रखकर काम के लिए निकलना पड़ता हैं,वह सिर्फ़ माँ चाहता हैं ,उसका थोड़ा समय चाहता हैं .हम आप तो ईश्वर में विश्वास रखते हैं ,मुसीबत,दुःख के समय उसके पास दौडे चले जाते हैं ,पर उसे तो यह तक नही पता कि ईश्वर होता क्या हैं। उसके लिए तो उसकी माँ ही ईश्वर हैं ,संसार के सभी लोग,पदार्थ बाद में हैं पहले हैं तो उसकी माँ।

कुछ दिन पहले एक न्यूज़ आई थी कि कैसे एक नौकरानी उसके भरोसे छोड़ ऑफिस गई एक माँ की नन्ही सी फूलकुमारी को बुरी तरह से मारती हैं ,देखकर दिल दहल गया ,सच हैं मानवीय संवेदनाये जहाँ अपनों में खत्म होती जा रही हैं तो वह तो महज नौकरानी हैं, वह किसी के बच्चे की क्यों अपने बच्चे कि तरह परवरीश करेगी.अपवाद हो सकते हैं ।
जिन माताओ का बच्चो को छोड़ जाना अति आवश्यक हैं उनका दुःख मैं समझ सकती हूँ,पर मैंने बहुत सी ऐसी माताओ को भी देखा हैं ,जिन्होंने इन सब के बीच मैं से मध्यम मार्ग निकाला है ,ताकि वे अपने बच्चो को अपना समय और प्यार दे सके।
बच्चो का दुःख,माँ से दूर जाने का त्रास माँ ही समझ सकती हैं ,आख़िर उनके कोमल हृदयों में से यह पुकार निकलना कितना सही हैं कि.. ...........................................................................भीड़ में यु न छोडो मुझे , क्या इतना बुरा हूँ मैं माँ।


बेबी फोटो //www.mummieandme.co.uk/ से साभार

6 comments:

रंजन (Ranjan) said...

वाकई.. बहुत मुश्किल फैसला होता है.. हमारे यहाँ offices इतने friendly नहीं होते कि बच्चे को साथ ले जाया जाये..

एकल परिवार या फिर प्रवासित परिवारों में यह बहुत कठीन समय होता है.. और परिणाम या तो माता को सहन करना पड़्ता है या संतान को... माँ नौकरी छोड़ घर देखे.. (मंहगाई १३ को छु रही है)... या फिर संतान को किसी के हवाले करे.. बहुत कठीन फैसला है.. पर फैसला तो करना हि है... माँ पर पहला हक़ तो संतान का ही है..

शोभा said...

बहुत भावपूर्ण रचना है। पढ़कर आनन्द आया। माँ का रिश्ता अपनी संतान से ऐसा ही होता है। सस्नेह

पारुल "पुखराज" said...

माँ बनने के बाद दुनिया ही बदल जाती है…सुंदर लेख

Tarun said...

maa shabd apne aap me hi itna sunder hai ki kya kahen.

डा. अमर कुमार said...

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भाई, आप जो भी हों..
लिख अच्छा गयीं हैं..

मुझे तो अच्छा लगा

' जो भी हों ' से मेरा मतलब हुआ करता है कि नाम गुम जायेगा पर लेख याद रहेगा

' लिख अच्छा गयीं हैं ' का कमेन्ट आपसे यह भरोसा माँग रही हैं कि आगे भी ऎसा ही लिखती रहेंगी

कुश said...

आपकी सारी पोस्ट में संवेदनाए मिलती है..