Thursday, August 28, 2008

चिंटू के स्कूल की छुट्टी ?नही!!!!!!!!!



चिंटू........ बिना उबला पानी,चिंटू रुको!!!!!!डॉ.साहब आपने ही तो कहा था की ८०%बीमारिया बिना उबले पानी से होती हैं ,फ़िर आप ही चिंटू को,अगर चिंटू को कुछ हो गया तो फ़िर स्कूल की छुट्टी होगी.डॉ.कहते हैं..................चांस ही नही .....

यह एड्वरटाइसमेन्ट जब पहली बार सुना तो पहले तो महिला की ओवर एक्टिंग पर हँसी आई,पर आखिरी वाक्य कि 'चिंटू के स्कूल की छुट्टी हो जायेगी',सुनकर मैं विचारो में खो गई,कि क्या सचमुच आज कि माये इतनी हैं बदल गई हैं कि बच्चे कि बीमारी से ज्यादा उन्हें स्कूल कि छुट्टी कि चिंता होने लगी हैं ?

पिछले कुछ सालो में विद्यालयीन शिक्षण के स्तर में भारी उछाल आया हैं ,साथ उछाल आया हैं डिग्री,डिप्लोमा करने वाले विद्यार्थियों में । आज का युग प्रतियोगिता का युग हैं ,जिसके हाथ में बड़ी बड़ी डिग्री हैं अनुभव हैं ,वो बड़ा नाम ,पैसा कमा रहा हैं, नए कोर्स ,विषय, तकनीक आई हैं .जिनके कारण समाज में शिक्षण के प्रति रुझान तो बड़ा ही हैं,साथ ही बढ़ी हैं प्रतियोगिता की भावना ,हर कोई डॉक्टर , इंजीनियर ,प्रोफेशनल बनना चाहता हैं,चाहता हैं की उसे बड़ी बड़ी कंपनी में नौकरी मिले,कोई बड़ा संवादाता बनना चाहता हैं तो कोई अच्छा सा कोर्स कर विदेशी डिग्री ले बड़ी सी कुर्सी पर बैठना चाहता हैं, किसीको टीवी पर आना हैं .इस सब में बढ़ी हैं प्रतियोगिता की भावना जिसके चलते कही न कही खत्म हो रहा हैं बचपन.
बचपन जो ईश्वर का अनमोल वरदान है ,आज हर माँ- पिता की इच्छा हैं की बेटा पढ़े,बेटी नाम करे ,वैसे यह स्वाभाविक इच्छाए हैं,कौन माँ पिता नही चाहते की बच्चे अच्छे निकले,किंतु आजकल कही न कही ये भी भावना आगयी हैं की मिंटू के 90%तो मेरे चिंटू के 99.99999999% तो आने ही चाहिए.आख़िर एडमिशन का सवाल हैं ,बड़ी आफत हैं बच्चो की, एक तो इतने सारे विषय ,उनसे सम्बंधित सारी किताबो का अध्धयन,स्कूल वर्क ,होम वर्क,और न जाने कितनी ट्यूशन .

जरा कक्षा एक के बच्चे का टाइम टेबल पढिये
मुन्नू नामक यह बालक सुबह ६ बजे उठ कर तैयार होकर ऑटो से स्कूल जाता हैं,1 बजे स्कूल से आकर,खाना खाकर तुंरत 1:30 मिनिट पर विघ्यान की ट्यूशन जाता हैं ,3 बजे वहा से लौट कर गणित की ट्यूशन जाता हैं ,4 बजे सिंगिंग क्लास ,6 बजे आकर बिस्किट खाकर 6:15 पर ड्राइंग क्लास जाता हैं 7 बजे वहा से लौट कर स्कूल करता हैं,9 बजे खाना खता हैं 10-11 होम वर्क करता हैं और सो जाता हैं .

आपको लगता हैं यह बचपन हैं ?इस बच्चे को खेलने -कूदने के लिए तो छोडिये, माँ पापा से बात तक करने की फुर्सत नही हैं ,कुछ माँऐ जो थोडी भावपूर्ण हैं उनके बच्चो को रोज़ 15-20 मिनिट का समय खेलने के लिए देती हैं. क्या हैं यह?? ये कैसा बचपन हैं?टीचर की डांट ,किताबो का बोझ,परीक्षा में माँ पापा ने चाहे,99%लाने का तनाव. यह क्या दे रहे हैं हम अपने बच्चो को?

इस भागम भाग में बच्चा कब बड़ा हो जाता हैं ख़ुद उसे भी पता नही चलता ,आख़िर क्या जरुरत हैं इस सबकी?

यह तथ्यपूर्ण सत्य हैं की हर इन्सान एक सामान गुण नही रखता ,हर व्यक्ति अलग हैं,उसकी इच्छाए अनइच्छाए अलग हैं ,रुचिया, क्षमताये अलग हैं ,हम अगर चिंटू को बिल्कुल मिंटू बनाना चाहे तो वह मिंटू नही तो नही बनेगा पर एक विचित्र मनुष्य जरुर बन जाएगा जो जिन्दगी में सब कुछ होकर कभी सुखी नही हो पायेगा,कयोकी उसके पास वह नही होगा जो वह वाकई चाहता हैं ,और उसने जो पाया हैं उसके लिए जो खोया हैं उसका दुःख जिन्दगी भर उसे सलाता रहेगा .

आज हम रो रहे हैं नौकरिया नही हैं ,बड़ी कठिन लाइफ हैं,पर एक बार सोचे हमने बड़े बड़े कोर्ससो से उपजे घ्यान पर आधारित उपलब्धताओ को ही कैरियर आप्शन माना हैं ,किंतु और भी बाते हैं जो हम कर सकते हैं ,हम कलाओ के बारे में गंभीरता पूर्वक सोच कर इन्हे अपना कैरियर बना सकते हैं,कोई भी काम छोटा बड़ा नही होता ,हम छोटी सी शुरुवात कर कोई वयवसाय कर सकते हैं. हमारा देश कृषि प्रधान है ,कृषि से सम्बंधित विषयों में हम दक्षता ग्रहण कर सकते हैं .

जरुरत हैं गहन विचार कर उसे अमल में लाने की,भेड़चाल चलकर तो हम अपना और अपने बच्चो का भविष्य खराब कर रहे हैं . तो जरा इस बात पर गौर करे,बच्चो बच्चा रहने दे,उनके स्वाभाविक गुण अपने आप जागने दे,उन्हें एक मौका दे उनके हिसाब से जिन्दगी जीने का ,सोचने का,वस्तुओ को देखने का,उन्हें मार्गदर्शन दे,पर जिस रास्ते दुसरे जा रहे हैं उस रास्ते खीचकर न ले जाए,तभी उनका और हमारा ,साथ ही देश का भला हो सकता हैं .

8 comments:

Shiv said...

सचमुच बचपन खो गया है....९८% वाले बच्चों की दुनियाँ हो गई है.

आज तो हालत ऐसी है कि बच्चे खोते नहीं हैं.....आख़िर बचपन जो खो गया है.

डॉ .अनुराग said...

जी हाँ बचपन खो गया है.....ओर उसे खोये हुए ज़माना बीत गया है....एकल परिवार......प्रतिस्पर्धा..ये भी कारण है पर एक बात ओर है पहले आप को कुछ बनने के लिए म्हणत करनी पड़ती थी ...अब ऐसा नही है आप अपने बच्चे को जो बनाना चाहे बना सकते है डोनेशन दे कर डॉ .......इंजीनियर

Udan Tashtari said...

सचमुच बचपन खो गया है....!!!!बिल्कुल सहमत हूँ आपसे.

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बचपन की खोती जा रही हँसी पर
रोने का वक़्त कसके पास है ?
वक़्त से पहले बच्चों को प्रौढ़ बनाने
वाली शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा विदों के बचपने का
अनोखा उदाहरण है ! साँस रोककर जीता हुआ आज
कल ज़िंदगी की बेशुमार खुशियाँ कैसे दे सकता है,
इस पर सही सोच को हवा देने का वक़्त आ गया है.
आपकी यह प्रस्तुति उस दिशा में एक कदम...एक पहल भी है.
=============================================
बधाई और शुभकामनाएँ
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

दिनेशराय द्विवेदी said...

अब बचपन कहाँ नजर आता है?

राज भाटिय़ा said...

रधिका जी मे आप की बात से सहमत हू, भारत मे बचपन खो गया बिलकुल सही,ओर जब भी कभी भारत आया यही सब देखा जो आप ने अपने लेख मे लिखा हे... लेकिन यह सब क्यो ?? मुझे इस क्यो का जबाब भारत मे नही मिला, क्यो कि किसी के पास हे ही नही, ओर बच्चे भी रटा लगा कर पढ रहे हे..
यहां मेरे दोनो बच्चे इस साल ११ वी मे गये हे, जब यह ३ साल के थे तो किन्डर गर्डन मे गये, जहां यह ३ साल रहे, इन तीन सालो मे इन्होने वहा कोई पढाई नही की, जब वहा से आना था तो अपना नाम लिखना सिखा, फ़िर पहली से आज तक इन का टाईम टेबल.. सुबह ७,३० पर घर से गये , ८ बजे स्कुल शुरु, ११,४५ तो कभी १२,४५ पर छुट्टी १,३० तक घर आये, खाना बगेरा खाया, थोडी देर टीवी देखा, फ़िर स्कुल का काम पुरा किया ( करीब एक घण्टा ) फ़िर सारा दिन मोज मस्ती.. गर्मियो की छुट्टियो मे कोई होम वर्क नही, शुकर वार को कोई होम वर्क नही, कोई रटा नही, कोई दवाव नही, ओर यह सिर्फ़ मेरे ही बच्चो के साथ नही पुरे युरोप मे सारे बच्चो के साथ हे, तो यह दवाव भारत मे ही क्यो, ओर मजे दार बात जो नये लोग भारत से यहां आते हे साथ मे दवाव भी ले कर आते हे,ओर तभी हमारे बच्चे दबू बन जाते हे.
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भारतीय समाज आज सब कुछ एकदम से हासिल करने के फास्ट ट्रेक रास्ते पे चल रहा है -
- लावण्या

Radhika Budhkar said...

आप सभी को धन्यवाद !आप सभी ने मेरे विचारो से सहमती जताई अच्छा लगा ,राज जी आपको बहुत बहुत बधाई कि आप अपने बच्चो को उनका बचपन जीने का मौका दे रहे हैं ,साथ ही समस्त यूरोप वासियों को भी हार्दिक बधाई ,यही बात समझनी हैं हम सभी को ,बच्चे नन्हे पौधे कि तराह होते हैं ,बोनसाई करके हम उनको छोटी उम्र में बड़ा बना देते हैं,पर उनकी नैसर्गिक सुन्दरता खो जाती हैं.यह उनके साथ ग़लत वहय्वार ही हैं हमारा .