Thursday, August 7, 2008

गीता पाठ की उम्र






शाम का समय था सिद्धिमति देवी अपने घर के देव कक्ष में बैठे भगवान के सामने हात जोड़े धीर गंभीर स्वर में मंद मंद आवाज़ में और लगभग एक ही सुर में गीता पाठ कर रही थी,उनका रोज़ का यही नियम था,शाम होते ही देवघर में जाकर दिया बाती करना और फ़िर करना गीता पाठ,कम से कम दो घंटे,उस समय उनको किसी भी तरह का हल्ला गुल्ला पसंद नही आता था,रोज़ के कम से कम दो अध्याय वे पढ़ती,भगवान श्री कृष्ण का मन ही मन स्मरण करती,स्वयं के पुण्यो का प्रतिशत बढाती, जाने कितने ही संस्कृत श्लोक ऐसे थे जिनका वे उच्चारण भी ठीक से नही कर पाती और जाने कितने श्लोको के अर्थ उन्हें आज तक पल्ले नही पड़े,हा जो कुछ भी अनुवाद उनकी मोटी सी गीता में लिखा था,उसका कुछ हिस्सा उन्होंने कंठस्थ कर लिया था,समय असमय छोटे- बडो के सामने वे उनका उल्लेख करती,और अपने घ्यान का प्रदर्शन कर धन्य धन्य हो जाती,कुछ समझे चाहे समझे इस गीता पाठ से उनको घर में और बहार विशेष सन्मान भी मिल जाता था और शाम के समय के कुछ घरेलु कामो से भी उनकी छुट्टी हो जाती थी,कुल मिलाकर गीता पाठ लिए बहुत फायदेमंद था,वे हमेशा अपनी उम्र की अन्य बहनों कोसलाह देती -बहन छोड़ो बेटे बहु की बाते,करने दो जो करना हैं तुम्हारी हो गई गीता पाठ की उम्र रोज़ करो मन को शान्ति मिलेगी,और घर जाकर
बहु को जोरदार फटकर मारती,चार पैसे भी तो ला सकी मरी दहेज़ में,कभी अपनी किसी सहेली को बताती,अरे दुर्गा बहन के बेटे की बेटी तो फला तरह के कपड़े पहनती हैं और लीला बहन के घर जो फला बहन आई हैं उसकी बनारसी साड़ी उसकी काकी की ननद की बहन की बेटी की देवरानी ने प्रेस से जला दी जानकर! अक्सर यही होता हैं सच कहे तो अपवाद छोड़ दे तो यही हो रहा हैं,गीता वाचन की एक उम्र निर्धारित कर दी गई हैं,उसके बाद रोज़ थोडी देर गीता पाठ! पहले तो हमें यह जानना जरुरी हैं की गीता आख़िर क्या हैं?हमने उसे हमारा श्रेष्ट धर्मग्रन्थ बना कर देवघर की ताक पर अच्छे से लाल कपड़े में बाँध कर चदा दिया हैं,रोज़ सुबह शाम उसकी पूजा तो हम करते है,पर उसे कभी पूछा नही करते. योगेश्वर श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता बताई वो क्यु?इसलिए की बेटा अब तुम्हारी उम्र हो गई हैं मन की शान्ति के लिए और अपने पुण्य बढ़ाने के लिए रोज़ थोडी देर इसको पढ़ना नही ! वो उन्होंने बताई इसलिए क्युकी वीर धनुर्धर अर्जुन परिजनों के मोह में फस कर युध्द से विरत हो रहा था। समय उसे सत्य असत्य का घ्यान करवा कर धर्म का सही अर्थ व् जीवन के माने समझा कर युध्द की और प्रवृत करना आवश्यक था सही कहा जाए तो अर्जुन केवल एक माध्यम था,जिसके द्वारा प्रशन पूछे गए और पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण ने उनका उत्तर दिया कुछ गाकर कुछ समझाकर ...और वह हुई गीता.... श्रीमद भगवत गीता जो कही गई हमारे लिए,पृथ्वी पर जन्म लेने वाले हर व्यक्ति के लिए। हम सभी जानते हैं की जीवन सरल नही हैं,वरन अत्यन्त कठिन हैं,जब से हम समझने लगते हैं,जीवन कष्टप्रद और किसी पहेली की तरह लगने लगता हैं, जाने किती बार हमारे अंतर्मन में द्वंद छिड़ जाता हैं की हम ये करे या वो,कितनी बार ऐसा होता हैं की हम थक जाते हैं हार जाते हैं लेकिन मुश्किलें कम होने का नाम नही लेती,हम नही जान पाते की जो बात हमें सुखी कर रही हैं वह कितनी सही और कितनी ग़लत हैं,हमें जीवन में किससे किस तरह का वह्य्वार करना हैं,कब क्या कैसे करना हैं? हमारे सामने आजीवन प्रश्नों की एक श्रृंखला होती हैं,कभी उत्तर मिलते हैं कभी नही मिलते,हम युही शाख से टूटे हुए पत्ते की तरह कभी इस और कभी उसे और जाकर जीवन का रास्ता तय कर लेते हैं,और बुढापा आते ही शुरू कर देते हैं गीता पाठ!!!!! जीवन में सबसे कठिन काम होता हैं स्वयं को बदलना,समझना,सम्हालना.गीता हमें सिखाती हैं,कैसे जिया जाए,निष्काम भावना से कैसे कर्म किए जाए,स्वयं को अवानछ्नीय मोह और लोभ से कैसे दूर रखा जाए,सही कहा जाए तो गीता सम्पूर्ण जीवन दर्शन हैं,जीवन व्याख्या हैं.गीता धर्मग्रन्थ इसलिए नही हैं क्युकी कृष्ण हिंदू थे और उन्होंने एक उपदेश किया,बल्कि गीता धर्म ग्रन्थ इसलिए हैं क्युकी धर्म के बारे में कहा गया हैं "ध्रु धातु धार्नायत "और "धारयति : धर्म"अर्थात जिसने सम्पूर्ण विश्व को धारण किया हुआ हैं,जिन नियमो ने सम्पूर्ण सृष्टि को बाँध रखा हैं वह हैं धर्म,अत: गीता धर्म ग्रन्थ इसलिए हैं क्युकी वह हमें उन नियमो पर चलना सिखाता हैं जो हमें उज्जवल भविष्य,सुंदर सरल जीवन,और शान्ति की राह पर ले जाते हैं,जो जीवन का मार्ग प्रशस्त करते हैं.स्वयं पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने गीता के चोथे अध्याय के १६ वे श्लोक में कहा हैं, "किम् कर्म किमकर्मेति कवयोप्त्र मोहित: तत्ते कर्म प्रव्क्ष्यामि यज्घ्यात्वा मोक्षस्येशुभात " अर्थात-इस विषय में बड़े बड़े विद्वोनो को भी भ्रम हो जाता हैं की कौन कर्म हैं और कौन अकर्म अतएव वैसा कर्म मैं तुझे बतलाता हु जिसे जान लेने से तू पाप से मुक्त होगा। मेरा विचार यह हैं की बचपन से ही गीता में क्या लिखा हैं और क्यु लिखा हैं इस बात की समझ बच्चो को देना चाहिए ,गीता पढने की सही उम्र बुढापा होकर जवानी हैं जब इन्सान को सही ग़लत की थोडी समझ चुकी होती हैं पर वो अभी भी दिग्भ्रमित होता हैं,उसे मार्गदर्शन की सबसे ज्यादा आवश्यकता होती हैं,और गीता पढ़ना याने यह नही की पढ़ डाले पॉँच अध्याय... हर श्लोक का अर्थ समझ कर उसका भावः समझ कर उसका उद्देश्य समझ कर अगर गीता पढ़ी तो वह सच्चा कर्म हुआ,सही अर्थो में गीता पठन हुआ, और गीता किसी धर्म विशेष के प्राणियो के लिए नही हर धर्म के, हर वय के,सृष्टि में जगने वाले सभी मनुष्यओ के लिए हैं,अतएव गीता पाठ करे,अभी करे, बुढापे में जाके जब बहुत सारा जीवन निकल गया,और अब सिर्फ़ दिखावे के लिए गीता पाठ किया तो वह गीता का ही नही भगवान श्रीकृष्ण का भी अपमान हैं.गीता पढ़े आज पढ़े अभी पढ़े जवानी में पढ़े,और बुढापे में भी पढ़े.पर उसको आत्मसात भी करे उसके अनुसार जीवन जिए.तभी आपके पुण्य कर्मो में बढोत्तरी होगी और आपको बुढापे में ही नही आजन्म शान्ति और सुख मिलेगा।

13 comments:

डॉ .अनुराग said...

नही पढ़े फ़िर भी अपने कर्तव्य को पूरा करे ओर अच्छे इन्सान बनकर रहे तो भी कोई बुराई नही

श्रद्धा जैन said...

bhagwan ka naam sakun deta hi hai
achha insaan bhawan ko yaad karta hai
magar achha insaan banne ke liye sirf bhagwan ka naam nahi aur bhi bhaut kuch karna hai

कुश said...

अच्छे कर्म भी उतने ही महत्वपूर्ण है जितना की अच्छा मन.. आपकी पोस्ट बहुत कुछ कहती है.. बधाई

Satish Saxena said...

अच्छा एवं अलग हट कर लिखा है !

aspundir said...

जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मुरत देखी तिन वैसी।
जीवन के प्रति हर इन्सान का अपना नजरिया होता है। फिर चाहे साक्षात् भगवान स्वयं भी अपने श्रीमुख से कुछ भी कहें, और धर्म ग्रन्थों में कहा गया भी ईश्वर कथित ही माना गया है। इसका कारण शायद यही माना जाये की भगवती की महामाया में फंसे हुए हैं॰॰॰॰॰॰॰॰
"तथापि ममतावर्त्ते मोहगर्ते निपातिताः।।
महामायाप्रभावेण संसारस्थितिकारिणा।
तन्नात्र विस्मयः कार्यो योगनिद्रा जगत्पतेः।।
महामाया हरेश्चैषा तया सम्मोह्यते जगत्।
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।"

36solutions said...

बहुत सुन्‍दर विश्‍लेषण किया है आपने । अनुकरणीय ........

Udan Tashtari said...

इस आलेख के लिए बहुत बधाई.

Anil Kumar said...

पढने में और पढने में ज़मीन-आसमान का अन्तर है!

Demo Blog said...

i started following your hindi writing just today.

you are terrific, your writings are soul touching...

kudos to you.

next time when you come up with any great thought, please do not forget to share with us..

have a lot of happiness and success..

Amit K Sagar said...

बहुत सुंदर . बेहद.

Unknown said...

आपके शब्दों में बेजोड़ ताकत।
हर युवा को श्रीमद्भगवदगीता का पठन करना चाहिए ।

Unknown said...

Krishna see Milne Ka yahi ek Bahamas hai bhagvat Geeta khud BHI Padma hai or Dustin Johnson BHI sunana jai jai Shri Krishna

Unknown said...

Padhne me bhi kya burai hai...es tarah k excuses ka koi arth nhi.